अठारहवाँ परिच्छेद
जब हमारे ऊपर कोई बड़ी विपत्ति आ पड़ती है, तो उससे हमें केवल दुख ही नहीं होता—हमें दूसरों के ताने भी सहने पड़ते हैं। जनता को हमारे ऊपर टिप्पणियाँ करने का वह सुअवसर मिल जाता है, जिसके लिए वह हमेशा बेचैन रहती है। मन्साराम क्या मरा, मानो समाज को उन पर आवाज़ें कसने का बहाना मिल गया। भीतर की बातें कौन जाने? प्रत्यक्ष बात यह थी कि यह सब सौतेली माँ की करतूत है। चारों तरफ यही चर्चा थी—ईश्वर न करे, लड़कों को सौतेली माँ से पाला पड़े। जिसे अपना बना-बनाया घर उजाड़ना हो—अपने प्यारे बच्चों की गर्दन पर छुरी फेरनी हो, वह बच्चों के रहते हुए अपना दूसरा ब्याह करे। ऐसा कभी नहीं देखा कि सौत के आने पर घर तबाह न हो गया हो। वही बाप, जो बच्चों पर जान देता था, सौत के आते ही उन्हीं बच्चों का दुश्मन हो जाता है—उसकी मति ही बदल जाती है। ऐसी देवी ने जन्म ही नहीं लिया, जिसने सौत के बच्चों को अपना समझा हो!
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