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सोलहवाँ परिच्छेद

महीना कटते देर न लगी! विवाह का शुभमुहूर्त आ पहुँचा! मेहमानों से घर भर गया। मुन्शी तोताराम एक दिन पहले ही आ गए; और उनके साथ निर्मला की सहेली भी आई। निर्मला ने तो बहुत आग्रह न किया था—वह खुद ही आने को उत्सुक थी। निर्मला को सबसे बड़ी उत्कण्ठा यही थी कि वर के बड़े भाई के दर्शन करूँगी, और हो सका, तो उनकी सुबुद्धि पर धन्यवाद दूँगी!

सुधा ने हँस कर कहा—तुम उनसे बोल सकोगी?

निर्मला—क्यों, बोलने में क्या हानि है। अब तो दूसरा ही सम्बन्ध हो गया। और मैं न बोल सकूँगी, तो तुम तो हो ही!

सुधा—न भाई, मुझसे यह न होगा। मैं पराये मर्द से नहीं बोल सकती। न जाने कैसे आदमी हों?

निर्मला—आदमी तो बुरे नहीं हैं; और फिर तुम्हें उनसे कुछ