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निर्मला
१८८
 


करती थी, उस विवाह की-जिसमें उसके जीवन की सारी अभिलाषाएँ विलीन हो जायँगी, जब मण्डप के नीचे बने हुए हवन-कुण्ड में उसकी आशाएँ जल कर भस्म हो जायेंगी!!