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ग्यारहवाँ परिच्छेद
 

बैठा हुआ रो रहा हूँ,मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है,मेरा दिल तुम्हारी ओर से साफ है।

डॉक्टर-फिर आपने अनर्गल बातें करनी शुरू की। अरे साहब, आप बच्चे नहीं हैं-बुजुर्ग आदमी हैं,जरा धैर्य से काम लीजिए!

मुन्शी जी-अच्छा डॉक्टर साहब,अब न बोलूँगा,खता हुई। आप जो चाहें कीजिए। मैंने सब कुछ आप पर छोड़ दिया।कोई ऐसा उपाय नहीं है,जिससे मैं इसे इतना समझा सकूँ कि मेरा दिल साफ है। आप ही कह दीजिए डॉक्टर साहब!कह दीजिए,तुम्हारा अभागा पिता बैठा रो रहा है।उसका दिल तुम्हारी तरफ से बिलकुल साफ़ है। उसे कुछ भ्रम हुआ था,वह अब दूर हो गया।बस,इतना ही कह दीजिए। मैं और कुछ नहीं चाहता। मैं चुपचाप बैठा हूँ।ज़बान तक नहीं खोलता;लेकिन आप इतना जरूर कह दीजिए!

डॉक्टर-ईश्वर के लिए बाबू साहब!जरा सब्र कीजिए,वरना मुझे मजबूर होकर आपसे कहना पड़ेगा कि घर जाइए। मैं जरा दफ्तर में जाकर डॉक्टरों को खत लिख रहा हूँ। आप चुपचाप बैठे रहिएगा।

निर्दयी डॉक्टर! जवान बेटे की यह दशा देख कर कौन पिता है, जो धैर्य से काम लेगा? मुन्शी जी बहुत गम्भीर स्वभाव के मनुष्य थे। यह भी जानते थे कि इस वक्त हाय-हाय मचाने से कोई नतीजा नहीं;लेकिन फिर भी इस समय शान्त बैठना उनके