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ग्यारहवाँ परिच्छेद

मुन्शी तोताराम सन्ध्या समय कचहरी से घर पहुँचे, तो निर्मला ने पूछा—उन्हें देखा, क्या हाल है? मुन्शी जी ने देखा कि निर्मला के मुख पर नाममात्र को भी शोक या चिन्ता का चिह्न नहीं है, उसका बनाव-सिङ्गार और दिनों से भी कुछ गाढ़ा हुआ है—मसलन् वह गले में हार न पहनती थी; पर आज वह भी गले में शोभा दे रहा था। झूमर से भी उसे बहुत प्रेम न था; पर आज वह भी महीन रेशमी साड़ी के नीचे, काले-काले केशों के ऊपर, फ़ानूस के दीपक की भाँति चमक रहा था।

मुन्शी जी ने मुँह फेर कर कहा—बीमार है, और क्या हाल बताऊँ?

निर्मला—तुम तो उन्हें यहाँ लाने गए थे?

मुन्शी जी ने झुँझला कर कहा—वह नहीं आया, तो क्या मैं ज़बरदस्ती उठा लाता? कितना समझाया कि बेटा घर चलो, वहाँ तुम्हें कोई तकलीफ़ न होने पावेगी; लेकिन घर का नाम सुन