खाली कर दिया;और मन्साराम वहाँ से आते ही अपना सामना इक्के पर लादने लगा। मुन्शी जी ने कहा-अभी ऐसी क्या जल्दी है? दो-चार दिन में चले जाना। मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे लिए कोई अच्छासा रसोइया ठीक कर दूं।
मन्सा०-वहाँ का रसोइया बहुत अच्छा भोजन पकाता है।
मुन्शी जी-अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना। ऐसा न हो कि पढ़ने के पीछे स्वास्थ्य खो बैठो।
मन्सा०-वहाँ नौ बजे के बाद कोई पढ़ने ही नहीं पाता,और सब को नियम के साथ खेलना पड़ता है।
मुन्शी जी-बिस्तर क्यों छोड़ देते हो,सोओगे किस पर?
मन्सा०-कम्मल लिए जाता हूँ। बिस्तर की ज़रूरत नहीं।
मुन्शी जी कहार जव तक तुम्हारा सामान रख रहा है जाकर कुछ खा लो। रात भी तो कुछ नहीं खाया था।
मन्सा०-वहीं खालूँगा। रसोइए से भोजन बनाने को कह आया हूँ। यहाँ खाने लगूंगा,तो देर होगी।
घर में जियाराम और सियाराम भी भाई के साथ जाने को जिद कर रहे थे। निर्मला उन दोनों को बहला रही थी-बेटा! वहाँ छोटे लड़के नहीं रहते, सब काम अपने ही हाथ से करना पड़ता......।
एकाएक रुक्मिणी ने आकर कहा-तुम्हारा वन का हृदय है;महारानी! लड़के ने रात भी कुछ नहीं खाया। इस वक्त भी बिन