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प्यारे को जमजाल से छुडाया था, परन् दीर्घायु कर छोडा था। फिर मेरे भाग्य का लिखा तुमने केसे शांचा ? प्रेमदेव की कृपा से मेरा भी अहिवात अवश्य ही अचल होगा, पस हो चुका, टा मिटा

"हे प्रेम सवस्व प्रताप मिश्रजी आपके घालण' अपी पुत्र की यधू मेरी हदयजा प्रेमेच्छा हो चुकी । लीजिए, यह मेरी, लाली पाली हुई बालिका श्रापकी सेवा में भाती है । यद्यपि माप कनौजिया हैं तो भी 'दहेज' की आशा छोड इस प्रेम विवाहिता पतोहू को प्रेम पुरस्सर स्वीकार कीजिए । भर आप हमारे समधो ठहरे, इसलिए इस बार प्रथम भेंट आपके लिए पांच रुपया भेजता E, और अपने दामाद' (अर्याद 'ब्राह्मण') के वास्ते हर साल पांच से पचासतक दिया करूगा,' क्योंफि अपनी यालिफा आपके हवाले की है। अब आपको भी यही उचित है कि अपने पुत्र का पूर्णोत्साह से प्रतिपालन करें, नहीं तो आपके माथे ब्रह्म हत्या तथा पुत्र हत्या का पातक पढ़ेगा। जन्म देना सहज है, पर उस जन्मे हुएं का भरप. पोपण, प्रतिपालन करना परम कठिन है।

"पद्यपि मुझको दो ढाईसौ रुपया मासिक मिलता है, सथापि बड़ा परिवार रहने के कारण आय-व्यय बराबर हो जाता है। नहीं तो मैं अकेला ही अपने दामाद को पोसता। अस्तु, यह प्रेम-कहानी यही समाप्त करता है। इस तुम्तम खेख को यदि माप छापना चाहे तो शुद्ध करके छा ।"

आपका परम हितेन्दु-
 
प्रेम दासानुदास,
 
रायसिंह देव
 
कोल्हापुर (सक्खिन)