पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/८६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ५६ )
हमारे उत्साह-बर्द्धक।

हम पास्तव में न विद्वान हैं, न धनवान, न बलवान, पर इमारा सिमान्त है कि अपने जीवन को तुच्छ न समझना चाहिए, क्योंकि इसका बनानेवाला सर्वशक्तिमान् सर्वोपरि परमात्मा,है। इसीसे कभी २ हमारे मुल से मुसहफी का यह वचन उमंग के साथ निकल जाता है कि:-

"जिस तरह सय जहान में कुछ हैं,
हम भी अपने गुमान में कुछ हैं,"।

कुछ न सही, पर कानपुर में कुछ एक बातें केवत ही पर परमेश्वर ने निर्भर की हैं, जिनकी कदर इस जमानेवाले नहीं जानते, पर हम न होगें तय शोक करेंगे? यदि लोग हमको भूल भी आयगे तो यहां की धरती अवश्य कहेगी कि हम में कमी कोई खास हमारा था!

पर आज जहां हमको यह सोच है कि हाय कानपुर के हम कौन हैं, इतना भी कानपुर नहीं जानता! वहा इस बात का हर्ष भी है कि बाहरवालों की दृष्टि में हम निरे ऐसे ही वैसे नहीं है। वाजे २ लोग हमें श्रीहरिश्चन्द्र का स्मारक समझते हैं। बाजों का खयाल है कि उनके बाद उनका सा रग दल कुछ इसी में है। हमको स्वयं इस बात का घमंड है कि जिस मदिरा का पूर्ण कुम्भ उनके अधिकार में था उसी का एक प्याला हमें भी दिया गया है, और उसी के प्रभाव से बहुतेरे हमारे दर्शन की, देवताओं के दर्शन की भांति, इच्छा करते हैं। बहुतेरे हमारे बचनों को ऋषि-वाक्य सटश मान्य समझते हैं। बहुतेरे बडे २ प्रतिष्ठित शब्दों से नाम लेते हैं। मातेरे हमें पत्र लिखते हैं तो गद्य पद्यमय लेखों से अलकृत