पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/८१

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भी रखते हैं, पर जो पात हो ही नहीं सकती, उसे क्या करें। बहुतेरे यह कहते है कि प्रजमाया की कविता हर एक समझ नीं सकता। पर उन्हें यह समझना चाहिए कि आपकी सही बोली ही कौन समझे लेता है।

फिर, यदि सयको समझाना मात्र प्रयोजन है तो सीधी २ गच लिखिए। कविता के कर्ता और रसिक होना हर एक का काम नहीं है। उन विचारों की चलती गाडी में पत्थर अट- काना, जो कविता जानते हैं, कभी अच्छा न कहेंगे। प्रजमापा (मो नागरी-देची की मनी बहिन है, उसका निज-स्वत्व दूसरी बहिन को सौंपना सहृदयता के गले पर छूरी फेरना है ! हमारागौरव जितना इसमें है कि गध की भाषा और रफ, पध झी भौर, उतना एफ को घिसकुल त्याग देने में कदापि नहीं। कोई किसी की इच्छा को रोक नहीं सकता। इस न्याय से नो कविता नहीं जानते थे अपनी वाली चाहे प्रसी रपखें चाहे फुदाय, पर कपि लोग अपनी प्यार की हुई पोली पर हुकम चलाके उसकी स्वतन्त्र मनोहरता का नाश नहीं करने के। जो कविता के समझने की शक्ति नहीं रखते सीखने का उद्योग करें। कवियों को क्या पड़ी है कि किसी के समझाने को अपनी पोखी बिगा।