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सोना ।

यह शब्द भी, हम जानते हैं, ऐसा कोई न होगा जिसे परम सुखदायक न हो। यदि दिनभर के श्रम से थके मादो फो यह न मिले तो दूसरे दिन के काम के न रहे । दिन रात ऐश करनेवालों को यदि एक दिन न मयस्सर हो तो वैद्यों फी चांदी है । योगी, कामी, कवि, जुवारी, इनको लोग कहते है नहीं सुहाता, पर हमारी समझ में घे भी केवल अपना व्यसनमात्र निवाह लें, नहीं तो एक रीति से सोते वे भी हैं । कोई ससार से सोता है, कोई परमार्थ से गाफिल रहता है। फिर क्योंफर फहिए कि सोने से कोई विरक्त है। इसके बिना मनुष्य का जीवन ही नहीं रह सकता।'

इधर दूसरे अर्थ में भी लीजिए, ऐसा प्यारा है कि स्त्रिया इसके लिए फानों को चलनी करा डालती है। यदि कोई ऐसा गहना हो जिसमें यरमे से हाथ पांव की हडिया छिदानी पढ़ें तो भी, हम जानते हैं, सौ में दो ही चार इन्कार करेंगी। मर्द तो इसके लिए धर्म, प्रतिष्ठा, वरच प्राण को भी नाश कर देते हैं । ससार में ऐमा कोई देश नहीं, जिसमें इसकी इज्जत न हो। हमारे पुराणों में भगवान् की स्त्री का नाम लक्ष्मी है, इस नाते जगत् की माता हुई। अत: उनकी जो प्रतिष्ठा की जाय, थोडी है। हमारे सिद्धांत में परमेश्वर को बिना प्रेम भदयी का कोई शब्द कहना महापाप है, पर एक फारसी कवि ने द्रव्य (सोना) की प्रशंसा में बहुत ही ठीक कहा है कि "हे सुवर्ण तू स्वय ईश्वर तो नहीं, पर ईश्वर की शपथ तू प्रतिष्ठा का रक्षक, (पर्दा रखनेवाला) पापों गा क्षमा करने