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परीक्षा।

यह तीन अक्षर का शब्द ऐसा भयानक है कि त्रैलोक्य को धुरी बला इसी में भरी है। परमेश्वर न करे कि इसस सामना किसी को पडे ! महात्मा मलीह ने अपने निज शिष्यों फो एक प्रार्थना सिखाई थी, जिसको आज भी सब किस्तान पढते हैं, उसमें एक यह भी भाव है कि "हमें परीक्षा में डाल, बरंच बुराई से बचा। परमेश्वर करे सब की भलमसी चली जाय, नहीं तो उत्तम से उत्तम सोना भी जा परीक्षार्थ अग्नि पर रखा जाता है तो पहिले कांप उठत है, फिर उसके यावत् परमाणु, सब छितर वितर हो जाते है। यदि कहीं कुछ खोट हुई तो जल ही जाता है, घट जाता है। जय जड पदार्थों की यह दशा है तय चैतन्यों का क्या कहना है ! हमारे पाठकों में कदाचित् ऐसा कोई न होगा जिसने बाल्यावस्था में कहीं पढा न हो। महाशय उन दिनों का स्मरण कीजिए, अब इम्तहान के थोडे दिन रह जाते थे। क्या सोते जागते, उठते बैठते हर घडी एफ चिन्ता विच पर चढी रहती थी। पहिले से अधिक परिश्रम करते थे तो भी दिनरात देवी देवता मनाते वीतता था। देखिए, क्या हो, परमेश्वर कुशल करे । सच है, यह अवसर ही ऐसा है । परी क्षा में ठीक उतरना हर किसी के भाग्य में नहीं है।

जिन्हें हम आज बडा पडित, धनी, वडा यती, महा देश हितैषी, महा सत्यसध, महा निष्कपट मित्र समझे बैठे हैं, यदि उनकी ठीक ठीक परीक्षा करने लगें तो कदाचित् फी सेकड दो ही चार ऐसे निकलें जो सचमुच जैसे बनते हैं वैसे ही चने रहें ? वेश्याओं के यहा यदि दो चार मास आपकी बैठक