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कारण-विशेप से मुंह के बाहर रह जाते हैं, और सारी शोमा खोके भेडिए कैसे दांत दिखाई देते हैं। क्यों नहीं, गाल और होठ दातों का परदा है, जिसके परदा नरहा, अर्थात् खजातित्व की गैरतदारी न रही, उसकी निरलज जिंदगी व्यर्थ है । कभी आपको दाढ की पीडा हुई होगी तो अवश्य यह जी चाहा होगा कि इसे उखडवा डालें तो अच्छा है। ऐसे ही हम उन वार्थ के अधों के हक में मानते हैं जोरहें हमारे साथ, वने हमारे ही देश भाई, पर सदा हमारे देश जाति के अहित ही में तत्पर रहते हैं। परमेश्वर उन्हें या तो सुमति दे या सत्यानाश करे। उनके होने का हमें कौन सुख ? हम तो उनकी जैजेकार मनावेंगे जो अपने देशवासियों से दातकाटी रोटी का वर्ताव (सद्यो गहरी प्रीति) रखते हैं ।परमात्मा करे कि हर हिन्दू मुसलमान का देशाहित के लिए चाव के साथ दातों पसीना आता रहे। हमसे बहुत कुछ नही हो सकतातो यही सिद्धान्त कर रक्खा है कि-

'कायर कपूत कहाय, दांत दिखाय भारत तम हरी', कोई हमारे लेख देख दांतों तले उगली दबाके सूझबूझ की तारीफ करे, अथवा दांत बाय के रह जाय, या अरसिकता वश यह कह दे कि कहा की दांताकिलकिल लगाई है तो इन बातों को इमें परवा नहीं है। हमारा दात जिस ओर लगा है, वह लगा रहेगा, औरों कीदतकटाकट से हमको क्या?

यदि दातों के सम्बन्ध का वर्णन किया चाहें तो बडे बडे अन्य रग डालें, और पूरा न पडे । आदि देव श्री एकदत गणेश जी को प्रणाम फरफे श्री पुष्पदताचार्य ने महिम्न में जिनकी स्तुति की है, उन शिवजी की महिमा, दतवक्त्र शिशुपालादि के संहारक श्रीकृष्ण की लीलाही गा चलें तो फोरि जन्म पार न

,क्षेणी: निबन्ध- नवनीत