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'युवा काल) ढोया । अपने लिए श्रम ही श्रम है, स्त्री पुनादि सपांच हमारे किसान चाहे भले ही कुछ सुपानुभव करलें।

यदि, ईश्वर बचाए, हम इद्रियाराम हो गये तो भो, यद्यपि कुछ बात के लिए, हम अपने को सुखी समझेंगे, कुछ लोग अपने मतलब को हमारी प्रशमा और प्रीति भी करेंगे, पर थोडे ही दिन में उस सुख का लेश भी न रहेगा, उलटा पश्चा- ताप गले पडेगा, परंच तृष्णा-पिशाची अपनी निराशा नामक सहोदरा के साथ हमारे जीवन को दुखमय कर देगी। काम, कोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य यह पड्वर्ग यधपि और अप स्याओं में भी रहते ही हैं,पर इन दिनों पूर्ण बल को प्राप्त हो के आत्म-मन्दिर में परस्पर ही युद्ध मचाए रहते हे, बरच कभीर कोई एक ऐसा प्ररल हो उठता है कि अन्य पाच को बना देता है, और मनुष्य को तो पाच में से जो बढता है वही पागल पना देता है। इसी से कोई २ बुद्धिमान कह गए हैं कि इनको बिरकुल दबाए रहना चाहिए, पर हमारी समझ में यह असम्भव न हो तो महा कठिन, परच हानिजनक तो है ही।

काम शरीर का राजा है, यह सभी मानते हैं, और मोनादि पाचो उसके भाई चा सेनापति हैं । यदि यह न होने के बराबर हों तो मानो हदय, नगर, अथवा जीवन, देश ही कुछ न रहा। किसी राजनर्ग के सर्वथा घशीभूत होके रहना गुलाम का काम हे घेसे ही राज पारिपद का नाश कर देने को चेया करना मी मूर्म, अदग्दर्शी अथवा श्रात तायी का काम है। सचा बुद्धिमान, पास्तविक पीर वा पुकारत इम उसको कहेंगे जो इन छहों को पूरे बल में रबफे इनसे अपने अनुकूल काम ले। यदि किसी ने बल- नाशक औषधि आदि के सेवन से पुरुषार्थ का शीर"नमसत्यक्षेणी: निबंध-नवनीत