पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/५३

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हमारे जगन्मान्य महर्पियों ने भी बाल-हत्यारों को आता यी कहा है, और 'नाततायि वधे दोप' यह आशा दी है। इश्वर ने भी हमको भविष्यत् का शान कदाचित् इस लिए हीं दिया कि यदि हम जान लेंगे कि यह लडका बडा होने पर अयोग्य होगा तो उसका सभार एव प्यार न करेंगे। हमारी इन सब बातों का तात्पर्य यह है कि ऐसे निष्पाप, प्रेम- तय दयापात्रों की भलाई पर ध्यान न देना देशहितैपिता के विरुद्ध है, वरच मनुष्यता से भी दूर है। अतः सामर्थ्यभर सबको तन-मन धन से इस नई पौध को उत्तम पथगामी, योग्यशील , स्वत्वाभिमानी बनाने का और आर्यजाति के मनाथ बालकों को मार्य-धर्म-द्वेषि पादरियों की रोटी खाके जन्मभर के पछिताने से बचाने का पूर्ण प्रयत्न करते रहना चाहिए।

हमारे कानपुर में तो जैसे हिन्दुओं की गौशाला में लाखों गौए पलती है वैसे हो मुसलमानों की अनाथशाला में करोडों मातृ पितृहीन बालको की रोटी चलती है। यदि कोई अन्य नगरवासी पुरुष रन कुछ उद्योग करें तो भी हम यह समझ के कृतकृत्य होंगे कि घरवालों ने न सुना तो पडोसियों ही ने इमारी बात पर ध्यान दिया। अरे भाई शीघ्रता में कुछ अधिक न हो सके तो अन्य स्थानों की गोरक्षिणी समाओं अथवा अनाथालयों ही को कुछ सहायता दो।