पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/४१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ३ )


शोभा अथच प्रतिष्ठा आदि हुआ करता है, जैसे "पानी उतरि गो तरघारिन को उड़ करछुलि के मोल विकाय", तथा “पानी उतरिंगा रजपूती का उह फिर विसुनौते (वेश्या से भी) वहि जाय" और फारसी में 'आवरू खाक में मिला बैठे' इत्यादि ।

इस प्रकार पानी की ज्येष्ठता और श्रेष्ठता का विचार करके लोग पुरुपों को भी उसी के नाम से आप पुकारने लगे होंगे। यह आपका समझना निरर्थक तो न होगा, वडप्पन और आदर   का अर्थ अवश्य निकल पायेगा, पर खींचखाच कर, ओर साथ ही यह शका भी कोई कर बैठे तो अयोग्यन होगी किपानी के जल, बारि, थम्बु, नीर, तोय इत्यादि और भी तो कईनाम हे उनका प्रयोग क्यों नहीं करते, "आप" ही के सुर्खाब का पर कहा लगा है ? अथवा पानी की सृष्टि सबके आदि में होने के कारण वृद्धही लोगों को उसके नाम से पुकारिए तो युक्तियुक हो सकता है, पर आप तो अवस्था में छोटों को भी आप आप कहा करते हैं, यह आपकी कौन सी विक्षता है ? या इम यों भी पद सकते ई शिपानी में गुण चाहे जितने हों, पर गति उसकी नीच ही होती है। तो क्या आप इमको मुह से आप भाप करके राधोगामी बनाया चाहते हैं ? हमें निश्चय हे फि धाप पानीदार होंगे तो इस बात के उठते ही पानी पानी हो जायगे, और फिर कभी यह शब्द मुह पर भी न लायगे।

' सहृदय सुहइगण आपस में आप पाप की घोली योलते भी नहीं है। एक मारे उर्दूदा मुलाकाती मौखिक मित्र ग्नने की अभिलापा से आते जावे थे, पर जय ऊपरी भावदार मित्रता का सा देखा तो हमने उनसे कहा कि यादरी लोगों के सामने की यात म्यारी है, अकेले में प्रथया शापायतवालों के मागे आर आप न पिया परो, इसमें मिनता की