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"किस रोग की हैं माप दवा कुछ न पूछिए,"

अच्छा साहब, फिर हमने पूछा तो क्यों पूछा? इसी लिए कि देखें आप "श्राप को शान रखते हैं या नहीं? जिस 'आप' को आप अपने लिए तथा औरों के प्रति दिन रात मुंह पर धरे रहते हैं, वह आप क्या है ? इसके उत्तर में आप कहिएगा कि एक सर्वनाम है । जैसे मैं, तू, हम,तुम, यह, वह आदि हैं वैसे ही आप भी है, और क्या है। पर इतना कह देने से न हमी सतुष्ट होंगे न आपही के शब्दशास्त्र ज्ञान का परि चय होगा, इससे अच्छे प्रकार कहिए कि जैसे 'म का शब्द अपनी नम्रता दिखलाने के लिए चिल्ली की बोलीकाअनुकरण है, 'तू' का शब्द मध्यम पुरुष की तुच्छता व प्रीति सूचित करने के गर्थ इत्ते के सम्योवनकी नकल है । हम तुम सस्कृत के अह त्वं का अपम्रश हैं, यह वह निकट और दूर की वस्तुवा व्यक्ति के द्योतनार्थ स्वाभाविक उच्चारण हैं, वैसे 'आप' क्या है ? किस भाषा के फिम शब्द का शुद्ध पा अशुद्ध रूप है, और आदर ही में बहुधा क्यों प्रयुक्त होता है ?

'हुजूर फी मुलाजमत से अक्ल ने इस्तेनफा दे दिया हो तो दूसरी बात है, नहीं तो आप यह कभी न कह सकेंगे कि "आप लफजे फारसी या अरबीस्त," अथवा "ओ टिज पना इंगलिश बर्ड, जय यह नहीं है तो खाहमदाह यह हिन्दी शब्द है, पर कुछ सिर पैर मुड गोड भी है कि याही श्राप छूटते ही सोच सकते हैं कि सस्कृत में आप फहते है जल को, और शास्त्रों में लिखा है कि विधाता ने सृष्टि के यादि में उसी को बनाया था, यथा-'अपपव ससर्जादौ तासुचीयमया सृजत,' बथा हिन्दी में पानी और फारसी,में चाय का अर्थ