पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१७४

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ककाराष्टक।

ज्योतिष जाननेवाले जानते हैं कि छोडाचक के अनुसा एक अक्षर पर जितने नाम होंगे उनका जन्म एक नक्षत्र केप ही चरण का होगा, और लक्षण भी एक ही ला होगा। व्यव हार-सम्बन्धी विचार में ऐसे नामां के लिए ज्योतिषियों के बहुत नहीं विचारना पडता । विना विचारे कह सकते हैं कि एक राशि, एक नक्षत्र, पक चरण के लोग मिल के जो कार फरंगे वह सिद्ध होगा। लोक में भी नाम राशी का अधिव सम्बन्ध प्रसिद्ध है। इगी विचार पर सतयुग में सत्य, सज नता, सद्धर्मादि का वडा गौरव था। हमारे पाठक जानते हो कि श्री महाराजाधिराज कलियुग जी देव (फारसी में भी तो घडे छटे बडे नीतिनिपुण हैं । वे काहे को चूकते हैं । जर द्वापर अत में इस देश की ओर आने लगे तो अपना भार राशी नगर समझ के इस कानपुर को अपनी राजधानी यनाय और बहुत से फकार ही नाम वाले मुसाहप बनाए । जिन से छ सभामद हम पर बडी कृपा करते हैं। श्रता हम सोचा कि अपने रत दयालु जजमानों की स्तुति न कर कृतघ्नता है। छ मुसाहब, एक महाराज,एक उनकी राजधान की स्तुति में एक चना डाले तोममारी जीव धर्म कर्मा से शीच मुक्ति पा सकेंगे। हमारे छ. देवता या कलिरा के मुख्य सहायक यह है,-एक कनौजिया यद्यपि कान्यकुब्न मडली इत्यादि कार्रवाइया उन्हों ने महाराज की मरसी बिलाफ की है, पर महाराज तो यडे गभीर हैं, ये बहुत को मागज हुए हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि इनकी पैदाइश घिरा भगवान के मुख से है, और गुख पेसा सार है जहा