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भारत पर भगवान की अधिक ममता है।

यद्यपि उनका नाम जगदीश्वर है। वे अकेले एक देश या एक जाति को ही ईश्वर नहीं हैं। सकल सृष्टि पर उनकी कृपा- दृष्टि आवश्यक है । एफ घार चे सभी को पूर्णामति न दे तो पक्षपाती कहावें । इतिहासवेत्ताओं को यह रात प्रत्यक्ष हे कि एक दिन भूमडल भरे में आय्या की जयध्वजा उदती थी। एक समय यरनों की फतह का नधारा बजा। आज अगरेजों की तूनी योलती है । ससार की यही रीति हे कि एफ की माज उन्नति है, कल अवनति, परसों और की यदती है। इसी से यर सिद्धान्त हो गया है कि ईश्वर सब की सुध लेता है। पर हमारे प्रेमशास्त्र और प्रत्यक्ष प्रमाण के भनुकूल इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि कोई कैमा ही क्यों न हो, यदि हम उससे सच्चो प्रीति करेंगे तो वह भी हमारा हो जायगा। इस न्याय से विचार देखिए ता हमारे देश को जितना परमात्मा के साथ सम्बन्ध सदा से है, और को कभी म रहा है, न है, न होने की आशा हे।

'सवं खरिचर्द ब्रह्मा 'सर्वदा सर्वभावेन भजनीयो ग्रजा- धिप। "सब तज हरि भज" इत्यादि वाक्यों का तत्व सम- झना.तो दुर रहा, ऐसे महामान्य वचन ही अन्य देशीय धर्म- प्रथ में करिनता से मिलेंगे। इसी भरोसे पर हम यह दावा कर सकते हैं कि हम ईश्वर से अधिक मेल रखते हैं, और इसीसे ईश्वर भी इमसे अधिक ममत्व रखता है। इसका ममाए भी हमें लेने नहीं जाना, हम मिद्ध पर टेंगे कि जितने काल जितनी श्रेणी तक सर्वभाव से आर्य देश की उम्नति रह चुकी है, वैसी अभी तक किसी ने सुनी भी