कि दो चार रुपये के लालच से यह अनर्थ न करें। कभी फभी लड़कों के सामने भी उनको शास्त्रार्थ में निरुत्तर करते रहें, जिसमें लडकों को उनको पोल पाल मालूम होतो रहे। लड़कों के माता पितादि को भी समझा कि जहा चार श्राने पाठ पाने महीना देते हैं यहां दो चार पैसे भैया जी को और दे दिया फरें, जिसमें उन्हें किस्तानी धन का घाटा भी न पडे, और प्रसन्नताचर्चक उन्हें अपने यहा न आने दें। यदि इतने पर भी उन्हें लोभदेव न छोडें तो लड़कों को वहां भेजना बद कर दे। बस यही उपाय है, जिससे यह अनर्थ फारिणी दची हुई आग बुझ जायगी। नहीं तो याद रहे कि खजूर की इंटे ऊपर ऊपर नहीं जाती। एक दिन वह अवश्य श्रावैगा कि जिस नई पौध के लिए हम अनेक पन, अनेक पुस्तके, अनेक सभा, अनेक लेक्चर, अनेक प्रीच करने है, जिस नई पौध से हमें बढी २ आशा है; वह नई पौध इस दवी आग में झुलस के रह जायगी, और हमारा इस काल का सारा परिश्रम व्यर्थ होगा स्वर्ग में भी हमारी आत्मा पछताएगी कि 'समय चूक फिर का पछिताने ।' .
पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१६०
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १३४ )