पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१५७

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और उनके उपदेश भी मानवजाति के महाहितकारक है । पर ईसाई हो जाना, या यों कहो कि पादरियों के मायाजाल में ऐमा अनिष्टकारक है कि मनुष्य, देश हित, और जातिदित से सर्वथा वनित हो जाता है। हमारे ईसाई भाई जिस जाति भोर शिस देश के भए उपजे हैं, उमसे न उन्हें कुछ ममता रहती हे न प्रेम, फिर उनसे क्या प्राशा की आय । इस 'पात को हमी नही समझते, ईश्वर के अनुग्रह ले सहस्रों लोग समझने लगे है। यह बात र समझदारों की समझ में आना दुर्लभ हे कि महात्मा मसीह ने मुक्ति का ठेका ले लिया है, विश्वास की महिमा मे तो ईसा पया हम चोराहे की ईट पूजने यामां को भी प्रतिष्ठा करते हैं, पर मताद में हिन्दुनों से श्रय पादरी साहपों का जीतना उबल रोटी का गस्सा नहीं है ऊपर से पादरी लोग हमारे ईसाई भाइयों का पक्ष नही लेते। पहुन ने मसीही दाो२फो महुताज हैं, इससे थोर भी सर्व साधारण की अधद्धा हो गई है। पर छोटे २ कोमल प्रहनि- चाले नासमझ चालकों को रवाना हम हिन्दू मुसलमानों का परम कर्तव्य है। उन्हें परमेश्वर न फरे पादाग्यिो ती चिकनी. चुपडी यातं असर करताय तो इमारी नई पौर निकम्मी हो जायगो । यही दूरदर्शिना सोच अनेक सजन मिशन-स्थल में अपने लडको को नहीं पढ़ाते पियोंकि वहा और पुस्तकों के साय इजील भी अवश्य पढनी परती है। हम इजाल को पुरा कदापि नहीं कहते, पद भी धर्म का एक अन्य ऐ, पर उसके पढगेवाले यदि अन्य धर्म पद्धपी न हो। पर हम खेद के साथ प्रकाश करते है, मीमिशन स्कूलों मं चदन लगाना योर गगा नहाना रानिमय गिता जाता है।

अभी हाल ही में पास के मिश्रारी साक्ष्य ने अपना जूता