अनयिंस में हजारों रुपए व्यय करके जब लौटोगे तो मिलेगी यही नौकरी। धमारा अभिप्राय यह नहीं कि नौकरी करोही मत, न करोगे ता जियोगे फैसे ? किन्तु यह अभीष्ट है कि पेमा उद्योग करो कि जिससे देश का धन देश ही में रहे। गज्य दूमरों का है, कुछ न कुछ धन तो अवश्य ही विदेश जायगा।यह यात तो पत्थर की लकीर ही है। पर ऐसा उद्यम करो, जिससे यथोचित द्रव्य के अतिरिक्त एक फौडी भी निदेश को नजाय । यदि सैर ही के प्रयोजन से विलायत जाते हो तो तनिक चेन करके देखिए तो हमार वैसे दिन नहीं रहे। यदि ऐसी ही इच्छा हे तो श्रीवृन्दापनादि तीर्थी को रमणीय करने को चेष्टा कीजिए। नहीं तो यह पवित्र म्यान एक तो वैसे ही पूर्वापेक्षा कुछ न्यूगतर रमणीय हो गए हैं, ठुमरे तुम और कर दोगे।
मुमलमानों के अत्याचार से तोमदिर भग्न हुए, आय तुम्हारे विलायत आदि जाने के व्यय में अकेले तीर्थ हो पा सुमारे सब ग्रहादि प्राणरहित देह के समान हो जायगं । जिस दिन तुम चिलायत में जाकर अपने प्राचार-बयवहार फैलायोगे, घऔर जैसे अन्य देशियों की रीति नीति तुमसीएते हो येस दूसरों को भी अपनी नीति सिम्बायोगे, उस दिन तुम्हें कोई चुरा पहेगा, और मोई जातिभ्रष्ट न देगा। बोल श्री नन्दन-