पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१३७

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विसर्जन तक का उदाहरण यनने को प्रस्तुत हैं । क्या तुम्हें भी उसी पथ का अपलयन करना मंगलदायफ म होगा' यदि बहकानेवाले रोचक और भयानक बातों से लाख पार करोद प्रकार समझा तो भी ध्यान न देना चाहिए। इस यात को यथार्थ समझना चाहिए कि पच ही का अनुकरण परम कतर्य है। क्योंकि पच और परमेश्वर का बडा गहिरा सम्बन्ध है। बस इसी मुख्य यात पर अचल विशास रखके पच के अनुकूल मार्ग पर चले जाइये तो दो ही चार मास में देख लीजियेगा कि यड़े२लोग भापके साथ यडे नेहसेसहानुभूति करने लगेंगे, और बडे २ विरोधी बड़े साम, दाम, दड, भेष से भी आपका कुछ न कर सकेंगे। क्योंकि सय से यडे परमेश्वर भौर उन्होंने अपनी पढ़ाई के बड़े २ अधिकार पच महोदय को दे रक्ले है। अतः उनके आश्रित, उनके हितैपी, उनके कृपा. पात्र का कमी कहीं किसी के द्वारा वास्तविक अनिष्ट नहीं हो सकता । इससे चाहिए कि इसी क्षण भगवान् पचधकू का स्मरण करके पच परमेश्वर के हो रहिए तो सदा सर्वदा पंच. पाहव की भाति निश्चित रहिएगा।

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