पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१३

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प्रतापनारायण की लिखी हुई पुस्तके, जिनके नाम ज्ञात हुए हैं, ये है।

१ कलिकौतुक (रूपक'), २ कलिप्रभाव (नाटक), ३ हटी हमीर (नाटक), ४ गो सङ्कट (नाटक), ५ जुझारी खुमारी प्रह सन, ६ प्रेम पुष्पावली, ७ मन का लहर, ८ श्रृङ्गार विलास,९ इगल सड (आल्हा), १० लोकोक्ति शतक, ११ तृप्यन्ताम् , १२ जाडला स्वागत, १३ भारतदुर्दशा (रूपक), १४ शैर-सर्वस, १५ प्रताप सग्रह, १६ रसखान-शतक, १७ मारस विनोद ।

इसके सिवा इन्होंने वर्णसाला, शिशुविज्ञान, और स्वास्थ्य रक्षा नाम को पुस्तके भी लिखी है । पर हमने इन पुस्तकों को नहीं देखा , इससे हम नहीं कह सकते, ये अनुवाद रूप हैं या इन्हीं की लिखी हुई है। शेषसख में आपने शिवालय, शिव लिङ्ग-स्थापना और शिवपूजन का समर्थन किया है। "तृप्यन्ताम्" एक विनोदात्मक कविता है, पर उपदेशपूर्ण है। उसमें देशदशा का अच्छा चित्र है । लोकोक्ति शतक भी अच्छी कविता हे। उसमें एक एक कहावत पर एक एक पद्य है और हर एक पय का अन्तिम चरण स्वयं कोई कहावत है इसकी कई एक किताबें विहार के शिक्षा विभाग मे, बाबूराम दीनसिह के प्रयत्न से, जारी हो गई थी। मालूम नहीं अब ये जारी हैं या नहीं। इनकी एक पुस्तक को मुरादाबाद निवासी पण्डित बलदेवप्रसाद ने प्रकाशित किया है, पर उसका नाम, इस समय, हमे याद नहीं । प्रतापनारायण की पुस्तकों में हम उनके सङ्गीत-शाकुन्तल को सबसे अच्छा समझते हैं। अपनी अन्तिम बीमारी में उन्होंने परमेश्वर की प्रार्थना में कुछ पद्यों की रचना की थी वे भी बहुत सरस, और भक्ति भाव-पूर्ण है।