पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१२४

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है। अपनी भलाई अपने हाथ से हो सकती है। मांगने पर कोई नित्य टिवल रोटी का टुकडा भी न देगा। इससे अपनपना मत छोडो। कहना मान जाव । आज होली है।

हां, हमारा हृदय तो दुर्दैव के वाणों से पूर्णतया होली- (होल अगरेजी में छेद को कहते हैं, उससे युक्त।) है। हम तुम्हारी सी जिंदादिली (सहृदयता) कहा से सूझे ?

तो सहृदयता के विना कुछ आप कर भी नहीं सकते, यदि कुछ रोए पीटे दैवयोग से हो भी जायगा तो "नफटा जिया चुरे हवाल" का लेखा होगा। इससे हृदय में होल (छेद) तो उनपर साहस की पट्टी चढाभो । मृतक की, भाति पडे । काखने से कुछ न होगा। आज उछलने ही कूदने का दिन है सामर्थ्य न हो तो चलो किसी हौली (मद्यालय) से थोई सी पिला लावे, जिसमें कुछ देर के लिए होली के काम के है जाओ, यह नेस्ती काम की नहीं।

वाह तो क्या मदिरा पिलाया चाहते हो?

यह कलजुग है । यडे २ वाजपेयी पीते हैं। पीछे से थल बुद्धि, धर्म, धन, मान प्रान सब म्वाहा हो जाय तो घला से पर थोडी देर उसकी तरग में "हाथी मच्छर, सूरज जुगन दिखाई देता है। इससे, और मनोविनोद के प्रभाव उसके सेवकों के लिए कभी २ उसका सेवन कर लेना इत चुरा नहीं है जितना मृतचित्त- यन बैठना । सुनिए । संगी साहित्य, सुरा और सौदर्य के साथ यदि निगम-विरुद्ध यत न किया जाय तो मन की प्रसन्नता और एकाग्रता कुछ नए लाभ अवश्य होता है, और सहदयता की प्राप्ति के लिए दो गुणों को आवश्यकता है, जिनके बिना जीवन की सा -कता दुःसाध्य है।