पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१२३

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इसे निकलती हैं यह वास्तव में हमारी नहीं हैं, और उनके बनने की योग्यता और शक्ति हमको तुमको क्या किसी को तीन लाक और तीन काल में नहीं है। पर इसमें भी पन्देह

करना कि जो काई चुपचाप आखें मोच के मान लेता है वह

परमानन्द भागी हो जाता है।

हिहि ! ऐमीवात मानने तो कौन नाता है, पर सुनकर पर मानन्द तोनहा, हां,मसवरेपन फाछ मजा जरूर पा जाता है ! भला हमारी बातों में तुम्हारे मुह से हिदि तो निकली! इस तोवडा से लटके हुए मुह के टाकों के समान दो तीन दात तो निकले । और नहीं तो, मसखरेपन ही का सही, मजा तो पाया। देखो, पाखें मट्टी के तेल की रोशनी और फुल्हिया के ऐनक की चमक से चौधिया न गई हो तो देखो। छत्तिसौ जात, यरच अजात के जूठे गिलास की मदिरा तथा मच्छ अभच्छ की गध से अकिल भाग न गई हो तो समझो। हमारी पातें सुनने में इतना फल पाया है तो मानने में न जाने 'क्या प्राप्त हो जायगा । इसी से कहते हैं, भैया मान जाय,राजा मान जाव, मुन्ना मान जायो । आज मन मारके बैठे रहने का दिन नहीं है। पुरस्नों के प्राचीन सुख सम्पति को स्मरण करने का दिन है। इससे हसो, योलो, गायो यजामो, त्योहार मनाओ, और सय से कहते फिरो-होली है।

हो तो ली ही है। नहीं तोश्रय रही क्या गया है। खेर, जो कुछ रह गया है उसी के रराने का यत्न करो, पर अपने ढंग से, नकि विदेशी ढग से। स्मरण रक्लो कि जब तक उत्साह के साथ अपनी ही रीति-नीति का अनुसरण न फरोगे तबतक कुछ न होगा। अपनी यातों को युरो द्वारि से देखना पागलपन है। रोना निस्साहसों का काम -