पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१२२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ६४ )

परमेश्वर ने तुम्ही को नहीं लदा दिया । यह कारखाने है, म चुरे लाग और दुःस सुख की दशा होती ही हुघाती रहती है पर मनुथ को चाहिए कि जय जैसे पुरुष और समय सामना ना पडे तब तैसा बन जाय । मन को किसी मगर में फसने न दे।

आज तुम सचमुच कहीं से भाग खाके आए हो इसी से ऐसी बेसिर पेर की हाक रहे हो। अभी कल तक प्रेम सिद्धान्त के अनुसार यह सिद्ध करतेथे किमन का किसी भी नगा रहना ही कल्याण का कारण है, और इस समय कह रहे हो कि 'मन को किसी झगड़े में फसने न देशवाह ! भल तुम्हारी किस बात को माने ?

हमारी बात मानने का मन करो तो कुछ हो ही न जाओ यही तो तुमसे नहीं होता। तुम तो जानते हो कि हम चोरी चहारी सिसावेंगे।

नहीं यह तो नहीं जानते । और जानते भी हों तो बुरा न मानते। क्योंकि जिस काल में देश का अधिकांश निर्धन, निर्वल, निरुपाय हो रहा है, उसमें यदि कुछ लोग “बुभुक्षित किन करोति पाप" का उदाहरण बन जाय तो कोई आश्चर्य नहीं है। पर हां यह तो कहेंगे कि तुम्हारी बातें कभीर समझ में नहीं आती। इससे मानने को जी नहीं चाहता।

यह ठीक है, परयाद रक्सो कि हमारीयात मानने कामानस फरोगे तो समझ में भी पाने लगेंगी, और प्रत्यक्ष फल भीदेंगी।

अच्छा साहव मानते हैं, पर यह तो पतलाइए जब हम मानने के योग्य ही नहीं हैं तो कैसे मान,सकते हैं ?

छि क्या समझ हे | अरे बाबा! हमारी बात मानने में योग्य होना और सपना मावश्यक नहीं है। जो बातें हमारे