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पहता था। एक बार बीमारी के बाद बाबू हरिश्चन्द्र के स्नान करने और अन्त में उनके मरने पर इन्होंने अपने पन में बहुत अच्छी करिता लिखी थी। अपनी कविता में इन्होंने बाबू हरि- श्चन्द्र की बहुत तारीफ की है। एक जगह आप कहते है-

बनारस की जमी नाजा है जिसकी पायरोसी पर । अदब से जिसके आगे चर्स ने गग्दन झुकाई हे ॥ घही महतावे हिन्दुस्ता यही गैरतदिहे नैयर । कि जिसने दिल से हर हिन्दू के तारीकी मिटाई हैं। सब उसके काम ऐसे हैं कि जिनको देग हेरत से। हर एक आकिल ने अपनी दात में उगली दवाई है। भारतजीवन, भारतेन्दु, उचितवक्ता और फतेहगढ पच आदि पत्रों और मासिक पुस्तकों से कमी कभी आप छेडछाड भी कर बैठते थे। यदि वे आपकी बात में दश देते थे तो आप उनको जवाब भी सूर देते थे। पण्डित बदरीदीन शुरु अकवरपुर (कानपुर) में मदरसा के सब-डेप्युटी इन्स्पेक्टर थे। उनकी तरकी आदि के बारे में आपने , न मालूम क्यों, बार यार "ब्राह्मण" में नोट लिखे हैं। इनके "ब्राह्मण" की एक कापी कानपुर के कलेक्टर के नाम से भी जाती थी।

"हिन्दोस्थान" से सम्बन्ध ।

१८८९ ईसवी में प्रतापनारायण कालेकाकर गये और श्रीयुक्त राजा रामपाल सिह के "हिन्दोस्थान" के सम्पादन मे महायता देने के काम पर नियत हुए । परन्तु उनके स्वभाव में सच्छन्दता अधिक थी। इस कारण वे बहुत दिनों तक वहा नहीं रह सके। उन्हें वहा से वापस आना पडा। उसी समय हिन्दुस्तान के सच्चे शुभचिन्तक माडला साहब इस