पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१०६

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आमद, Tax (टैक्स) कर। भावार्थ यह दुना कि जिस हालत में आमदनी न हो उसमें जोटैक्स लगै वह इनकमटैक्स है! इस पर यदि हमारे अग्रेजी जाननेवाले पाठक यह कहे कि ऊट- पटांग अर्थ किया है, और केवल नागरी-नागर समझे कि धन्य भाषा का अर्थ असम्बद्ध है, हिन्दी पत्र में क्यों लिखा ? उनको यो समझना चाहिए कि हमारी सरकार को ब्रह्मदेश की आमदनी अनायास हाथ लगी है, इसकी खुशी में हम पर यह टेक्स ( बहुत खुश हुए तो इंट फेंक मारी,) न्यायेन लगाया गया है।

कुछ हो, हम समझ वा न समझे, पर सरकार की किसी यात में रोना चिल्लाना वा तर्क करना योग्य नहीं, केवल

  • हफिनेच्छा बलीयसी" कहके सतोप करना चाहिए था, पर

क्या करें, सम्पादक धर्म तो परम कठिन है। इसमें विना कुछ कहे उमग की हत्या होती है। इससे कोई सुने पान सुने, पर हम हाथ जोडके, पायं पडके, दाँत दियाके, पेट खाके यही विनय करते हैं कि अस्तु, हुमा सो हुआ, हमें क्या, जहा और सय प्रकार के राज दड हैं वहा एक यह भी सही, घरच और हो (परमेश्वर न करें)तोवह भी सही, पर इसकी तशस्त्रील (जाच) जरा न्यायशील पुरुषों को सौंपी जाय तो भी बडी दया हो। हमने कई विश्वस्त लोगों से सुना है कि देशात में विचारो की वार्षिक आय पांच सौ भी नहीं है, उनको केवल उजले कपड़ों के कारण पांच हजार का पुरुष तजवीज़ करते हैं। यदि यही दशा रही तो भारत के गारत होने में कोई सन्देह न होगा। हमारी सर्कार स्वय विचार देखे कि अब हम वह नहीं रहे।