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निबंध-रत्नावली

उससे गिरा हुआ है क्योंकि उसमें त्रिवर्ग के फल की इच्छा बनी हुई है अत: वह राजस है और स्वर्ग का उपयोगी है। दुर्योधन का विचार सबसे निकृष्ट है, क्योंकि उसने अहंकार के वशवर्ती जिम तामस भाव को ग्रहण कर लिया उसे नहीं छोड़ा। वह त्रिवर्ग का कारण नहीं, इस लाक का कारण है। जिस प्रकार प्रह्लाद और ध्रुव ने जो बात पकड़ी थी अंत तक उसका निबाह किया उसी प्रकार महावीर दुर्योधन ने भी मृत्यु पर्यन्त अपनी इस बात को रक्षा की कि-

"सूच्यग्रं नैव दास्यामि विना युद्धेन केशव ।"

अपने इस तामस विचार की रक्षा हो के कारण दुर्योधन ने स्वगलोक पाया था। हा! आज इस देश में तामसी धारणा का भी अभाव हो गया। जरा सी बात में सबकी धैर्यच्युति हो जाती है, मानो भारत की राज्यश्री के साथ धृतिदेवी भी यहाँ से कूच कर गई।

क्षमा धर्म का दूसरा लक्षण है। जो पुरुष धीर होता है, क्षमा भी उसी को ग्रहण करती है। धैर्य के बिना क्षमाशील होना कठिन ही नहीं, वरंच असम्भव है।

परापराध सहन करने का नाम क्षमा है। जैसे कि बृहस्पति जी कहते हैं-

वाह्य चाध्यात्मिके चैव दुःखे चोत्पादिते क्वचित् ।
न कुप्यति न वा हन्ति सा क्षमा परिकीर्तिता ।।