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निबंध-रत्नावली

दिखाई देता है । हनुमानगढ़ी एक ऊँचे टीले पर बनी हुई है: अनुमान पचास साठ सीढ़ियाँ चढ़ने पर हनुमानजी के दर्शन नसीब होते हैं। गढ़ी के मध्य में पत्थर का छोटा सा मंदिर है। उसी में हनुमानजी विराजते हैं। यह मूर्ति वीरासन से बैठी हुई है। दूसरी छोटी मूर्ति और भी है जो पुरानी कही जाती है और जो पुष्पों में छिपी रहती है। मंगलवार के मंगलवार यहाँ मेला लगता है। पाठ पूजन करनेवाले यहाँ दो चार यात्री भी पाया जाया करते हैं। यहाँ के बैरागी बड़े मालदार और जबरदस्त समझ जाते हैं ।

कहते हैं कि यह गढ़ी पहले गुसाई संन्यासियों के अधिकार में थी, बैरागियों ने उन्हें अधिकारच्युत कर दिया। सआदत अलीखाँ के समय गढ़ी की नींव पड़ी थी और वाजिद अली के समय यह दृढ़ बनाई गई और जगह जगह मोरचे तैयार किए गए थे, जो अभी तक वर्तमान हैं। गढ़ी में हजारों बैरागी हैं। नीचे कई मकान भी 'गुफा' की तरह बने हुए हैं जिनका ठीक ठीक भेद गढ़ी के प्रधान बैरागियों के सिवाय अन्य पुरुष नहीं जान सकता।

संवत् १९१२ के प्राषाढ़ में असहिष्णु मुसलमानों को यह सह्य नहीं हुआ कि नवाबी के समय हिंदुओं का इतना ऊँचा मंदिर बने। इसी लिये लड़ने का बहाना किया कि गढ़ी के नीचे हमारी मसजिद थी जिसको बैरागियों ने तोड़ दिया है। हम उनके मंदिर को तोड़ेंगे। मदांध मुसलमानों ने अपने विचार