एक खाखी बैठा हुया हिंदुनों को यह शोचनीय दृश्य दिखा रहा है ! बस यही हमारा सर्वप्रधान देवमंदिर है।
महाराज विक्रम ने यहाँ एक अति मनोहर 'रामकूट' प्रासाद बनवाया था। बर्बर बाबर ने रामकूट का ध्वंस कर उसी के मसाले से मसजिद बना डालो । एक पत्थर में मसजिद का निर्माणकाल हिजरी सन् ९२३ खुदा हुआ है। प्राचीन मंदिर के अति सुंदर दस खंभे मसजिद में लगे हुए हैं। अनेक देवताओं का सुंदर प्रतिमाएँ, जिनको मुसलमानों ने विकृत कर रखा है, पुराने रामकूट मंदिर की सुंदरता और म्लेच्छों की नीचता का प्रमाण दे रही हैं।
जन्मभूमि के पास ही 'जन्मस्थान' है। मंदिर कलीचूने का बना हुआ साधारण है । यह जन्मभूमि को मूर्ति के लिये नवाबी समय में बना, और पीछे से बढ़वाया गया। यहाँ की देव-मूर्तियाँ दर्शनीय हैं। और दर्शनीय है 'सीता की रसोई'। मंदिर के नीचे एक तहखाना है। बाहर पैसा देकर आदमी अंदर जा सकता है। एक बेलन और चकला रखा हुआ है। कहा जाता है कि यही सीताजी की रसोई है। स्त्रियाँ इसको बहुत देखती हैं। ऐसा ही यहाँ एक कोपभवन भो हाग्य की सामग्री है।
हनुमानगढ़ी सचमुच 'हनुमानगढ़ी' है। एक तो यह गढ़ी के आकार ही से नाम की सार्थकता करती है। दूसरे यहाँ बंदर भी इतने हैं कि यह मंदिर वास्तव में उनका गढ़