पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/८२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५४
निबंध-रत्नावली

कमी नहीं और बैरागियों के लिये यहाँ का शून्यप्राय मंदिरों का बाजार भी प्रति दिन उन्नत हो रहा है। अयोध्या के वर्तमान महाराज श्री प्रतापनारायणसिंह बहादुर अयोध्या की प्रकृत उन्नति कर रहे हैं। उनके राजभवन का निरीक्षण कर प्रत्येक सचेत का चित्त संतुष्ट होता है। अयोध्या के अविद्य और उदरसवस्व 'टकाराम' बैरागियों से दुःखित यात्रो को राजभवन में आकर आराम मिलता है। महाराज के मंदिर, उद्यान और पुस्तकालय सब मनोहर हैं, रसिकता से खाली एक भी नहीं है।

अयोध्या में सरयू के अतिरिक्त प्राचीन चिह्न कुछ भी नहीं हैं और न कोई वैसा आदरणीय और पूजनीय मंदिर है । देखने- वाले यदि नवीन दृश्य की इच्छा करें और देवमूर्तियों के दर्शन किया चाहें तो यहाँ उसका भी नितांत प्रभाव नहीं है । जन्म- भूमि, जन्मस्थान, हनुमानगढ़ी, नागेश्वरनाथ कनकभवन आदि देवमंदिर और स्वर्गद्वार एवं गुप्तार घाट प्रभृति स्थान यहाँ देखने योग्य कहे जा सकते हैं।

जन्मभूमि ग्घुवंशियों की जन्मभूमि है । राम-लक्ष्मण के खेलने की जगह है, हिंदुओं के पूजने और लोटने का स्थान है पर आजकल कलेजा थामकर रोने की जगह है ! ऊँचे ऊँचे खंडहर हैं । इमली के पेड़ हैं, चारों ओर हजारों कबर हैं और बीच में शाह बाबर की बनवाई हुई मसजिद खड़ी है। इसी के चौक में एक छोटा सा चबूतरा है, जिस पर एक पर्णकुटीर में भंगर्वान् दाशरथी की मूर्ति विराजमान हैं। पास