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अयोध्या


इस प्रकार अयोध्या 'कोट खाई' से घिरकर सचमुच 'अयोध्या'हो रही थी। पर हमारी अयोध्या की इन पुरानी बातों को दो चार व्यूहलर और वेबर आदि जो दुराग्रही विलायती पंडित सहन नहीं करते उनके लिये यह असह्य और अन्याय की बात हो रही है कि जिस समय उनके पितर वनचरों के समान गुजारा कर रहे थे,उस समय हिदुओं के भारतवर्ष में पूर्ण सभ्यता और आनंद का डंका बज रहा था! लाचार हमारी पुरानी बातों का इन्हें खंडन करना पड़ता है। लंडन नगर का चाहे जितना विस्तार हो. पेरिस नगरी चाहे जितनी बड़ी हो,यह सब हो सकता है; किंतु अयोध्या का अड़तालीस कोस में बसना सब झूठ है! इतना ही नहीं, एक साहब ने कहा है कि अयोध्या के चारों ओर कोट की जगह काठ का बाड़ा बना हुआ था, जैसा अब भी जंगली लोग पशुओं से बचने के लिये जंगल में खड़ा कर लिया करते हैं। इसके सिवाय और सब ब्राह्मणों की कल्पना है!

वेबर को इस पर भी सन्तोष वा विश्‍वास नहीं हुआ कि 'हिंदुओं के पूर्वजों के पास एक बाड़ाभी रहा हो "उसने लिख मारा है कि "न अयोध्या हुई और न कोई राम! सब कवि. कल्पना है"। सीता को हल से जुती हुई धरती की रेखा और आर्यों की खेती ठहराई है और रामचंद्र तथा बलरामजी (अर्थात् हलभृत्, और सीतापति) को एक ही ठहराकर यह निगमन निकाला है कि लुटेरों से प्रजा की खेती की जो बलराम