हो गए। उसी ब्रह्मस्वरूपा सनातनी शक्ति महामाया सरस्वती देवी के आराधन का यह पवित्र दिन है।
गौतम, कणाद, कपिल और व्यास आदि के आनंद का यही दिन है। कालिदास, भवभूति आदि महाकवियों का यही उपास्य समय है। विक्रम और भोज के समय में इस दिन की धूमधाम का ठिकाना न था, क्योंकि सरस्वती की सुसंतान का यह महापर्व है। सच्चे सारस्वतों का यह "सारस्वतोत्सव" सर्वस्य है। भारत में अब कितने महापुरुष इस दिन की महिमा समझनेवाले हैं? कितने पुरुष हैं जो यह समझते हों कि तेज तथा प्रताप का कारण शुष्क वीरता नहीं है, सरस्वती-प्रदत्त बुद्धिमत्ता है। पुराणों में लक्ष्मी का वाहन उलूक और सरस्वती का हंस लिखा है। क्या इससे हमको यह शिक्षा नहीं मिलती कि लक्ष्मी के कृपापात्र प्रायः घोंघावसत होते हैं जिनको दिनमणि के प्रकाश में सूझता तक नहीं और सरस्वती के दयापात्र वे महा- पुरुष होते हैं जिनमें 'दूध का दूध और पानी का पानी' करने की असाधारण सामर्थ्य विद्यमान है, जिनको भूत भविष्य और वर्तमान के महत्त्व समझने की महाशक्ति परमात्मा ने दी है और जो सरस्वती की पूर्ण कृपा से महाशक्तिमान पद के अधिकारी हैं।
सरस्वती की जिन पर कृपा है, वे ही विधाता के स्नेहभाजन होते हैं, महासरस्वता की अपर मूर्ति महालक्ष्मी का उन्हीं के यहाँ आसन जमता है। जरा विचार कर तो देखिए, प्रबल पराकांत महावीर महाराष्ट्र पानीपत के पिछले युद्ध में नादिरशाह से क्यों