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श्रापचमा

मौसम के खेती कदापि न लगेगो। इस कारण कालपुरुष के साथ काल की तुलना शास्त्रकारों ने की है। यहाँ इस विषय का विचार नहीं करना है कि काल क्या वस्तु है और कार्य मात्र के प्रति उसकी कारणता क्यों स्वीकर की गई है। यहाँ केवल इतना ही कहना है कि हमारे शास्त्रकारों ने प्रत्येक कार्य का विधान देश, काल और पात्र के अनुसार किया है, जो युक्तियुक्त होने से सर्वथा उपादेय है। दिन में क्यों जागना और रात में क्यों सोना इत्यादि प्रश्न उठा स्वभावसिद्ध और समयानुकूल कार्यों में यदि कोई दुराग्रही कुछ हेरफेर करना चाहे तो कर भी सकता है, परंतु इसमें कष्ट और हानि के अतिरिक्त लाभ की संभावना नहीं है। होली, दिवाली आदि वार्षिकोत्सवों वा त्योहारों पर जो कुछ क्रिया-कलाप हमारे यहाँ होता है एवं शास्त्र ने जिसका विधान भी किया है, उसका ठीक वही काल है, उस काल में कालोचित कार्य करने पर मनुष्य उतना ही लाभवान होता है जितना मौसम पर खेती करनेवाला किसान।

श्रीपंचमी वा वसंतपंचमी भी हमारा एक बड़ा त्योहार है। केवल इसी कारण से नहीं कि इस दिन देव मंदिरों में वसंत का खूब ठाठ जमता है, प्रत्युत इसलिये भी यह दिन अधिक माननीय माना गया है कि इस दिन उस महाशक्ति का महोत्सव होता है जिसके बिना बड़े बड़े सूर-सामंतों की बड़ी भारी सेना बात की बात में एक ही निर्बल पर बुद्धिमान् पुरुष से परास्त हो .ई, जिसके बिना राजाधिराज भिक्षुक बन गए और तेजस्वी निस्तेज