पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/३०

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निबंध-रत्नावली माघ सुदी पंचमी का नाम 'वसंतपंचमी' है और इसका दूसरा नाम 'श्रीपंचमी' भी है । वसंतपंचमी नाम होने का यह कारण है कि इसी दिन से "वसंतोत्सव" का प्रारंभ होता है। यों तो वसंत ऋतु में चैत्र. वैशाख इन दो महीनों की गणना है, किंतु हमारे यहाँ के सहृदय पुरुष इसी दिन से वसंत को अलापने लग जाते हैं । इसी दिन से कुछ और ही प्रकार का पवन चलने लगता है और ही प्रकार के मन हो जाते हैं । इसी दिन भगवान् मुरलीमनोहर पर गुलाल चढ़ाकर पहले पहल वसंत गाया जाता है । इसी दिन से डफ बचने लगता है । 'ऋतुराज" के स्वागत को धूमधाम इसी दिन से प्रारंभ हो जाती है । यहाँ यह कहना अनावश्यक है कि इस उत्सव में भगवद्भजन ही की प्रधानता है। दूसरा नाम इसका "श्रीपचमी" है । इस नामकरण का कारण हमारे शास्त्र में यह लिखा है कि इस पवित्र दिन से 1

  • "इमां ब्रह्मपुराणोक्तां या करोति च पंचमोम्

लक्ष्मीसमा भवेन्नारी इह लोके परत्र च॥ विधानं शृणु धर्मज्ञ ! यादृशी पंचमी मम । वर्षाणि षट् प्रकर्तव्या परमप्रीतिमानसा ॥ शुद्धकाले तु संप्राप्ते पंचमी या शुभा भवेत् । तस्यामारभ्य कर्तव्य व्रतं पापप्रणाशनम् ।। ( ब्रह्मवैवर्तपुराण)