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निबंध-रत्नावली

तो कश्मीर का पश्चिमोत्तर प्रांत है। संभव है कि मध्यभारत की भूतभाषा की मूल बृहत्कथा का कोई रूपांतर उधर हुमा हो जिसके आधार पर कश्मीरियों के संस्कृतानुवाद हुए हैं। राज- शेखर ने, जो विक्रम संवत् की दशवीं शताब्दी के मध्य भाग में था, अपनी काव्यमीमांसा में एक पुराना श्लोक उधृत किया है जिसमें उस समय के भाषानिवेश की चर्चा है-“गौड़ (बंगाल ) आदि संस्कृत में स्थित हैं, लाटदेशियों की रुचि प्राकृत में परिचित है, मरुभूमि, टक्क (टांक, दक्षिण पश्चिमी पजाब) और भादानक के वासी अपभ्रंश प्रयोग करते हैं, अवंती ( उज्जैन ), पारियात्र (बेतवा और चंबल का निकास ) और दशपुर ( मंदसोर ) के निवासी भूतभाषा की सेवा करते हैं, जो कवि मध्यदेश ( कन्नौज, अंतर्वेद, पंचाल आदि ) में रहता है, वह सर्व भाषाओं में स्थित है"। गजशेखर को भूगोल विद्या से बड़ी दिलचस्पो थी। काव्यमीमांसा का एक अध्याय का अध्याय भूगोल-वर्णन को देकर वह कहता है कि विस्तार देखना हो तो मेरा बनाया भुवनकोश देखो। अपने श्राश्रयदाता की राज- धानी महोदय (कन्नौज) का उसे बड़ा प्रेम था। कन्नौज और

पांचाल की उसने जगह-जगह पर बहुत बड़ाई की है। महोदय


  • लाकोटे, वियना ओरिएंटल सोसाइटी का जर्नल, जिल्द ६४,

पृ०६५ आदि।

+ बीजोल्यां के लेख में भी भादानक का उल्लेख है, यह प्रांत राजपूताने में ही होना चाहिए।