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निबंध-रत्नावली

 मर्ति बैठी बनाई जाती है, स्त्रो की खड़ी। पुरुष-मूर्ति के दोनों ओर कहीं-कहीं चामरग्राहिणियाँ भी बनी होती हैं। राजाओं की मति घोड़े पर होती है। वस्त्र-शस्त्र भी दिखाए जाते हैं। उस प्रांत में जहाँ-जहाँ बाँ, नौण, तला आदि हैं वहाँ सब जगह महरे रखे जाते हैं। सड़क के किनारे जो जलाशय मिलता है वहाँ गाँव पास हो तो ८-१० प्रतिमाएँ रखी मिलेंगी। कुल्लू, मंडी तथा शिमल के कुछ पहाड़ी राज्यों में भी यही चाल है । यह प्राचीन देवकुल की रीति अब तक उन प्रांतों में है जहाँ परिवर्तन बहुत कम हुए हैं।




  • बाँ= (संकृस्त) वापी,(बिहारी कवि) वाय,(मारवाड़ी) बाव । नौण =(संस्कृत) निपान(पाणिनिकानिपानमाहावः), (मारवाड़ी) निवाण। तला=(संस्कृत ) तड़ाग या तटाक (हिंदी) तालाब ।