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देवकुल

 से नवनंदों द्वारा शैशुनाकों का उच्छेद होने तक पांच शैशुनाक राजा हुए । उनमें से अंतिम राजा को तो राज्यापहारी नंद (महापद्म ) ने काहे को प्रतिमा खड़ी की होगी । अतएव शैशुनाक देवकुल में भी चार ही प्रतिमाएँ होंगी । इस चतुर्दैवत स्तोम में से अज, उदयिन् तथा नंदिवर्धन की प्रतिमाएँ तो इंडियन म्यूजियम में हैं । तीसरी को हाकिंस ले गया। चौथी अगम कुएँ के पास पुजती हुई कनिंगहम ने देखी थी। संभव है कि इनका भी पता चल जाय।

परखम की मूर्ति भी संभव है कि राजगृह के शैशुनाकों के राजकुल की हो । यह हो सकता है कि वह किसी बड़ी भारी विजय या अवदान के * स्मरण में परखम में ही खड़ी की गई|


  • लोकोत्तर सात्त्विक दान को अवदान कहते हैं । बुद्ध के अवदान प्रसिद्ध हैं । अवदान का संस्कृत रूप अपदान है । काश्मीरी कवि इसका प्रयोग करते हैं। श्राबू में प्रसिद्ध वस्तुपाल तेजपाल के मंदिर के सामने दोनों भाइयों तथा उनकी स्त्रियों की प्रतिमाएँ हैं । विमलशाह के मंदिर में भी स्थापक को प्रतिमा है । राजपूताना म्यूजियम, अजमेर में राजपूतदंपति की मूर्तियाँ हैं जो उनके संस्थापित मंदिर के द्वार पर थीं । पृथ्वीराजविजय में लिखा है कि सोमेश्वर (पृथ्वीराज के पिता) ने वैद्यनाथ का मंदिर बनाया और वहाँ पर अपने पिता (अर्णोराज) की घोड़े-चढ़ी मूर्ति रीति धातु की बनवाई। इससे आगे का श्लोक नष्ट हो गया है किंतु टीका से उसका अर्थ जाना जाता है कि पिता के सामने उसने अपनी मूर्ति भी उसी धातु की बनवाई थी ( दत्ते हरि