बाब हैं। पहले के और पीछे के राजाओं में बहुत ही कम (शायद नहीं भी ) मिलते हैं। दोनों जोड़ले भाई थे। वाल्मीकि ने इनके सब संस्कार साथ ही किये थे। शब्द-ब्रह्म का नया श्लोकमब विवर्त वाल्मीकीय रामायण इहान्ने साथ ही साथ पढ़ा । उसे गा- गाकर लोकापवाद-भोरु रामचंद्र की निकाली हुई सीता के वियोग- दुःख को वे कुछ कुछ कम करते थे और उनका लोकोत्तर गान सुनकर रामचंद्र ने जब उनसे पूछा कि 'गेय को नु विनेता वा ?' (तुम्हें गाना किसने सिखाया ) तो उन्होंने वाल्मीकि का नाम लिया और पीछे राम ने उन्हें पहचानकर स्वीकार किया। बड़ी रोचक और करुण रस की कथा है। उन दोनों का नाम समास करके 'कुशलवौ' ऐसा भी आता है और कई जगह वाल्मीकीय रामायण में 'कुश लवौ' भो पाता है, जैसे-
अभिषिच्य महात्मानावुभौ रामः कुशीलव।।
(रामायण उत्तरकांड)
कुश और लव का समास करने पर बीच में ई का श्रा घुसना नई बात होने पर भी संस्कृत व्याकरण के जाननेवाले के लिये नई नहीं है। क्योंकि वहाँ बालक का नाम तो हरिचंद्र होता है, एक खास राजर्षि का नाम उन्हीं शब्दों से बन- कर हरिश्चंद्र हो जाता है; दुनिया का दोस्त इस अर्थ में विश्व + मित्र बनता है और उसी में एक खास ऋषि का नाम होने से 'आ' आ जाता है और वह शब्द विश्वामित्र हो