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निबंध-रत्नावली

इस पर थोड़े ही से विचार की आवश्यकता है । ब्रह्मसमान, आर्यसमाज और प्रार्थनासमाजों ने संगीत और वाद्य की अपने विचारों के प्रचार में बहुत सहायता ली है । नई सनातनधर्म सभाओं ने भी भजनमंडलियों और नगर कीर्तनों से अपने को रहित नहीं रखा है। वंगदेश की सभ्य ब्रायो महिलाएँ, बंबई प्रांत की परभू जाति की कुलवतियाँ, मद्रास की उच्च ब्राह्मणों से लेकर नैयर जाति तक की ललनाएँ, अपने अपने प्रांतों की उन्नति लक्ष्मी की मूर्तियाँ बनकर संगीत और वाद्य का प्रेम दिखाती है। जैसा इधर के प्रांतों में संगीत को नीच जातियों का विषय मानने का पुराग्रह है, जैमी ही स्त्रियों को उन्नति को रोकने की कुप्रथा है वैसे ही यहाँ पर उन्नति देवी का आना दूर है। पंजाब में भी जो कुछ जागृति दिखाई देती है तो उसके साथ ही साथ विष्णु दिगंबर पुलस्कर के गंधर्व महाविद्यालय की चर्चा सुनाई पड़ती है।

मालूम हाता है कि जैसे कृस्तान धर्म के पुराणकर्ताओं ने सब लोकों के घूमने से एक प्रकार का अनाहत नाद होना माना है जा परमेश्वर के सिंहासन के चारों ओर विजय-संगीत का स्वर सुनाता है, वैसा ही देशां की, मनुष्यों की और हृदयों की उन्नति में संगीत का एक तानलय प्रभाव है जो उन्नति की विजयपताका का उड़ाता हुआ चलता है।

हिंदू शास्त्रकारों का कहीं पर संगीत वाद्य आदि को गर्हित ठहरानेवाला कहा जाता है परंतु सब वाक्यों की मीमांसा करने