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निबंध-रत्नावली
ऊनद्वादशवर्षायामप्राप्त: पंचविंशतिम् ।
मीजिए चरक तो बारह वर्ष पर ही एज श्राफ कंसेंट बिल' देता है, बाबाजी क्यों सोलह कहते हैं ? चरक की छपी पोथियों में कहीं यह पाठ न मूल में है, न पाठांतरों में । न हुआ करे- हमारे पड़दादा की पोथी में तो है !
इसी लिये आर्यसमाज से कहते हैं कि "मारेसि मोहि कुठाउँ"।