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कछुआ-धर्म

करके ब्रह्महत्या मिटती थी और कहाँ नाव में जानेवाले द्विज का प्रायश्चित्त कराकर भी संग्रह बंद । वही कछुआ- ढाल के अंदर बैठे रहो।

पुर्तगाली यहाँ व्यापार करने आए । अपना धर्म फैलाने की भी सूझी । 'विवृतजघना को विहातु समर्थः ?' कुएँ पर सैकड़ों नर-नारी पानी भर रहे और नहा रहे थे। एक पादरी ने कह दिया कि मैंने इसमें तुम्हारा अभक्ष्य डाल दिया है । फिर क्या था? *छुए को ढाल के बल उलट दिया गया। अब वह चल नहीं सकता । किसी ने यह नहीं सोचा कि अज्ञात पाप पाप नहीं होता । किसी ने यह नहीं सोचा कि कुल्ल कर लें, घड़े फाड़ दें या कै ही कर डाले। गाँव के गांव ईसाइ हो गए । और दूर दूर के गाँवों के कछुओं को यह खबर लगी तो बम्बई जाने में भी प्रायश्चित्त कर दिया गया।

हिन्द से कह दीजिए कि विलायती खाँड खाने में अधर्म है उसमें अभक्ष्य चीजें ड़ती हैं। चाहे आप वस्तुगति से कहें, चाहे राजनैतिक चालबाजी से कहे, चाहे अपने देश की आर्थिक अवस्था सुधारने के लिये उसकी महानुभूति उपजाने को कहें । उसका उत्तर यह नहीं होगा के राजनैतिक दशा सुधरनी चाहिए। उम्मका उत्तर यह नहीं होगा कि गन्ने की खेती बढ़े । उसका केवल एक ही कछुवा उत्तर होगा-वह खाँड खाना छोड़ देगा, बनी बनाइ मिठाइ गौओं का डाल देगा, या बोरियाँ गंगाजी में बहा देगा । कुछ दिन पीछे कहिए कि देशी खाँड के बेचने-