(११) कछुमा-धर्म
मनुस्मृति में कहा गया है कि जहाँ गुरु की निंदा या असत्- कथा हो रही हो वहाँ पर भले आदमी को चाहिए कि कान बंद कर ले या और कहीं उठकर चला जाय। यह हिंदुओं के या हिंदुस्थानी सभ्यता के कछुआ-धर्म का मादर्श है। ध्यान रहे कि मनु महाराज न न सु-ने योग्य की कलंक-कथा के सुनन क पास से वचन के दो ही उपाय बताए हैं। या तो कान ढककर बैठ जाया या दुम दबाकर चल दो। तीसरा उपाय, जा और देशों के सौ में नब्बे आदमियों को ऐसे अवसर पर पहले सूझेगा, वह मनु ने नहीं बताया कि जूता लेकर, या मुक्का तानकर सामने खड़े हो जाओ और निंदा करनेवाले का जबड़ा तोड़ दो या मुँह पिचका दो कि फिर ऐसी हरकत न करे। यह हमारी सभ्यता के भाव के विरुद्ध है। कछुआ ढाल में घुम जाता है, आगे बढ़कर मार नहीं करता। अश्वघोष महाकवि ने बुद्ध के साथ साथ चले जाते हुए साधु पुरुषों को यह उपमा दं है-
देशादनारभिभूयमानान्महर्षयो धर्ममिवापयान्तम् ।
अनार्य लाग देश पर चढ़ाई कर रहे हैं। धर्म भागा जा
रहा है। महर्षि भा उसके पीछे पीछे चले जा रहे हैं। यह
कर लेंगे कि दक्षिण के अप्रकाश देश को कोई अत्रि या अगस्त्य
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