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का लंबा जीवन देख लो। किसो ने इन काठ के पुतलों को जो कहा कि तुम ऋषिसंतान हो, बस अब हम ऋषिसंतान हैं । इसकी माला फिरनी शुरू हुई ! इधर तो योग प्राप्त न हुआ, कैवल्य का कुछ मुख न देखा, इधर अब माला शुरू हुई है, देखिए ये कब ऋषि-रूप होते है। हमारी अवस्था भयानक है। मेरे विचार में प्राचीन ऋषियों के साथ आजकल के भारत- निवासी उनको शूद्रों की श्रेणी से भी कम पदवी के हैं। वे ऋषि अब होते तो सच कहता हूँ हमको म्लेच्छ कहकर हमसे धर्म- युद्ध रचते और हमें इस देश से निकाल इस धरती को फिर से आर्यभूमि बनाते। उन्होंने असुरों से युद्ध मचाया ही था और असुरों को पगस्त किय ही था। वे जब असुरों को संहार न सके तो हम मैले-कुचैले लोगों को अपने पास कब फटकने देते। क्या असुर, जन्म से उनके पुत्र पौत्र नहीं थे ?
तप नहीं, दान नहीं, ज्ञान ही सही। हाय ! वह वस्तु जिसको पाकर शाक्यमुनि बुद्ध हो गए, जिसको पाकर मीराबाई हमारे हृदय और बुद्धि को हिला देनेवाले बल में बदल गई, जिसको पाकर एक तरखान का बच्चा आधे जगत् का अधिपति हो गया, जिसको पाकर जुलाहे चमार चंडाल ब्राह्मणों से भी उत्तम पदवी को प्राप्त हो गए, जिसके चमत्कार से बालक ध्रुव अटल पदवी को पाकर न हिलनेवाला ताग हो गया, वह ज्ञान जिसकी महिमा गाते गाते महाप्रभु चैतन्य
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