की बारिश हुई थी। मैंने अपने घर के नीचे-ऊपर से, सहन से, छत से इकट्ठा करके एकत्र कर लिए थे। पहले तो रखने का स्थान नहीं था परंतु जब प्रेम से मन की दीवारों पर लगाने लगा तो क्या देखता हूँ कि मेरे मन में अनंत स्थान है और आनंद से चित्र लटक रहे हैं। मित्रों ! सारे विराट् को लटकाकर मैंने देखा कि अभी मेरा कमरा खाली का खाली ही था।
आजकल के उपदेश किए जा रहे पवित्रता के
साधनों पर एक साधारण दृष्टि
प्रिय पाठक ! प्रथम मुझको यह प्रकट करना है कि इस शीर्षक के नीचे आकर यदि कई इस देश के बड़े बड़े आदमी भी कट जायँ, यदि कई एक बे-नाम भारतनिवासियों के दिल के खिलौने टूट जायँ, यदि कई एक बागियाना विचार आजकल के कल्पित हिंदू धर्म के विरुद्ध युद्ध का झंडा उठावें, यदि प्राचीन ऋषियों की आज्ञा का भी कहीं कहीं पालन न हो, यदि सोमनाथ के मुर्दों और हृषिकेश एवं हरद्वार के जीते लोगों के पूजा के शरीरों का अंत हो जाय; कुछ भी हो, उससे कभी भी यह परिणाम न निकालना कि मेरा अभिप्राय स्वप्न में भी प्राचीन ऋषियों-ब्रह्मकांति में रहनेवालों-की आज्ञा का तिरस्कार करने का है, या उनके उपदेश किए हुए आदर्शों के तोड़ने का है, या आक्षेप लगाना स्वीकृत है, या कभी उनके सम्मुख होकर बिना सिर झुकाए गुजरना है या किसा प्रकार से अपने देश-