पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/२१९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७९
पवित्रता

महारानी नूरजहाँ रावी नदो के किनारे लाहौर शहर के उस तरफ मामूली धरती की गुफा में लेटी है, कभी कभी उठकर एक निगाह इस सारे देश पर करती है। सब्ज काही रोज जा जा- कर उसके चरणों पर नमस्कार करती है। ग्रीष्म ऋतु रंग- बिरंग के पत्ते इसके ऊपर बरसाती है। वसंत ऋतु जब कभी आती है उसके सिर पर फूलों की वर्षा करती है। इस भारत की महारानी के स्थान की यात्रा यहाँ आ होती है। मुझे आप आशीर्वाद देते हैं, और अपनी मलका का दर्शन कर मैं अजीब भावों से भर अपने पाठक के मुख को देखता हूँ।

( २५) वह कौन बैठे हैं! कमल के फूल का सिंहासन है, उस पर पद्मासन लगाए निर्वाण-समाधि में लीन, कपिलवस्तु का राजकुमार बैठा है। जगत् को जीत चुका है। राजाओं का राजा है। बुद्ध के पत्थर के गढ़े चित्र तो कई देखे, वे भी अद्भुत हैं। पर शाक्यमुनि बुद्ध आप सभी से अद्भुत है । दर्शन दुर्लभ तो नहीं, वह रुकते तो नहीं, उनको तुम्हारी खबर भी नहीं। पर दीदार खुले होते हैं । जहाँ बुद्धजी का चित्र है, वह मन पवित्र है, स्थान पवित्र है।

(२६) किसी गाँव की एक गली है। किसान लोग रहते हैं। वह कौन आया ! जिसे देखने सब के सब नर-नारी बालक घरों से बाहर निकल आए। नीली नीली विभूति रमाए, एक हाथ में भिक्षा- पात्र, दूसरे हाथ में पार्वती को पकड़े साक्षात् शिव-पार्वती आ रहे हैं। अब मंगल होगा। सब को वर मिलेंगे । वह लो-