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मजदूरी और प्रेम

साथ ही धम-धम थम-थम नाच की उन्होंने धूम मचा दी। मेरी आँखों के सामने ब्रह्मानंद का समाँ बाँध दिया। मेरे पास मेरा भाई खड़ा था। मैंने उससे कहा-"भाई, अब मुझे भी भेड़ें ले दो।" ऐसे ही मूक जीवन से मेरा भी कल्याण होगा। विद्या को भूल जाऊँ तो अच्छा है । मेरी पुस्तकें खो जावें तो उत्तम है। ऐसा होने से कदाचित् इस वनवासी परिवार की तरह मेरे दिल के नेत्र खुल जायँ और मैं ईश्वरीय झलक देख सकूँ। चंद्र और सूर्य की विस्तृत ज्योति में जो वेदगान हो रहा है उसे इस गड़रिए की कन्याओं की तरह मैं सुन तो न सकूँ, परंतु कदाचित् प्रत्यक्ष देख सकूँ। कहते हैं, ऋषियों ने भी, इनको देखा ही था, सुना न था । पंडितों की ऊटपटाँग बातों से मेरा जी उकता गया है । प्रकृति की मंद मद हँसी में ये अनपढ़ लोग ईश्वर के हंसते हुए ओंठ देख रहे हैं। पशुओं के अज्ञान में गंभीर ज्ञान छिपा हुआ है। इन लोगों के जीवन में अद्भुत आत्मानुभव भरा हुआ है । गड़- रिए के परिवार की प्रेम-मजदूरी का मूल्य कौन दे सकता है ?

मजदूर की मजदूरी

आपने चार आने पैसे मजदूर के हाथ में रखकर कहा- “यह लो दिन भर की अपनी मजदूरी" | वाह क्या दिल्लगी है ! हाथ, पाँव, सिर, आँखें इत्यादि सब के सब अवयव उसने आपको अर्पण कर दिए। ये सब चीजें उसकी तो थी ही नहीं, ये तो ईश्वरीय पदार्थ थे । जो पैसे आपने उसको दिए वे भी

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