निबंध-रत्नावली
धर्म और आध्यात्मिक विद्या के पौधे को ऐसी आरोग्य- वर्धक भूमि देने के लिये, जिससे वह प्रकाश वायु में और खिलता रहे, सदा फूलता रहे, सदा फलता रहे, यह आवश्यक है कि बहुत से हाथ एक अनंत प्रकृति के ढेर को एकत्र करते रहें। धर्म की रक्षा के लिये क्षत्रियों को सदा ही कमर बाँधे हुए सिपाही बने रहने का भी तो यही अर्थ है। यदि कुल समुद्र का जल उड़ा दो तो रेडियम धातु का एक कण कहीं हाथ लगेगा। आचरण का रेडियम-क्या एक पुरुष का, और क्या जाति का, और क्या एक जगत् का-सारी प्रकृति को खाद बनाए बिना-सारी प्रकृति को हवा में उड़ाए बिना भला कब मिलने का है ? प्रकृति को मिथ्या करके नहीं उड़ाना; उसे उड़ाकर मिथ्या करना है। समुद्रों में डोरा डाल- कर अमृत निकाला है। सो भी कितना ? जरा सा ! संसार की खाक छानकर आचरण का स्वर्ण हाथ आता है। क्या बैठे बिठाए भी वह मिल सकता है ?
हिंदुओं का संबंध यदि किसी प्राचीन असभ्य जाति के साथ रहा होता तो उनके वर्तमान वंश में अधिक बलवान श्रेणी के मनुष्य होते- तो उनके भी ऋषि, पराक्रमी, जनरल और धीर वीर पुरुष उत्पन्न होते । आजकल तो वे उपनिषदों के ऋषियों के पवित्रता-मय प्रेम के जीवन को देख देखकर अहंकार में मग्न हो रहे हैं और दिन पर दिन अधोगति की ओर जा रहे हैं। यदि वे किसी जंगली जाति की संतान होते