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निबंध-रलावली

जब साहित्य, संगीत और कला की अति ने रोम को घोड़े से उतारकर मखमल के गद्दों पर लिटा दिया-जब आलस्य और विषय-विकार की लंपटता ने जंगल और पहाड़ की साफ हवा के असभ्य और उद्दंड जीवन से रोमवालों का मुख मोड़ दिया तब रोम नरम तकियों और बिस्तरों पर ऐसा सोया कि अब तक न आप जागा और न कोई उसे जगा ही सका। ऐंग्लो-सैकसन जाति ने जो उच्च पद प्राप्त किया वह उसने अपने समुद्र, जंगल और पर्वत से संबंध रखनेवाले जीवन से ही प्राप्त किया । इस जाति की उन्नति लड़ने भिड़ने, मरने मारने, लूटने और लूटे जाने, शिकार करने और शिकार होनेवाले जीवन का ही परिणाम है । लोग कहते हैं, केवल धर्म ही जाति को उन्नत करता है । यह ठीक है, परन्तु वह धर्माकुर, जो जाति को उन्नत करता है, इस असभ्य, कमाने और पाप-मय जीवन की गंदी राख के ढेर के ऊपर नहीं उगता है। मंदिरों और गिरजों की मंद मंद टिमटिमाती हुई मोमबत्तियों की रोशनी से योरप इस उच्चावस्था को नहीं पहुँचा । वह कठोर जीवन, जिसको देशदेशांतरों को ढूँढ़ते फिरते रहने के बिना शांति नहीं मिलती; जिसकी अंतज्र्वाला दूसरी जातियों को जीतने, लुटने, मारने और उन पर राज करने के बिना मंद नहीं पड़ती-केवल वही विशाल जीवन समुद्र की छाती पर मूंग दलकर और पहाड़ों को फाँदकर उनको उस महानता की ओर ले गया और ले जा रहा है । राबिन हुड की प्रशंसा में इंगलैंड के